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Thursday, November 18, 2010

मखमल में पैबंद हूँ

DATELINE INDIRAPURAM
6-11-2010


मखमल में पैबंद हूँ
बरसों रही यही हैसियत मेरी |

मखमल को वो सहेजती रही |

पैबंद मखमल के साथ
अपनी कमजदगी का एहसास लिए
बरसों धुना, पिटा, निचुड़ा
पर मखमल का हिस्सा रहने
की मुहिम जारी रखी
पैबंद ही सही, पर था 
वो मखमल का हिस्सा |

फिर एक दिन पैबंद को
एहसास हो उठा कि
वो सिर्फ पैबंद नहीं है
वो तो मखमल का ही एक
मखमली हिस्सा था |

और फिर उसने मुहिम छेड़ दी
मखमल से अपना मखमली
वजूद स्वीकार करवाने  की |

पैबंद जागरूक हो उठा था
उसे अब और दबे-कुचले रहना
मंजूर नहीं था |

पर जो आँखे, जो हाथ, जो आत्मा
उसे बरसों पैबंद की पदवी पर बिठाये रखी
वो तैयार नहीं थी  पैबंद को
अपने विशाल मखमल का
मखमली हिस्सा मानने के लिए |

उसने कह दिया पैबंद से कि
क्यों इतना दुसाहस करते हो
पैबंद हो पैबंद रहो, मेरे मखमल
क़ी तरह मखमली वजूद पाने क़ी
ख्वाइश ना रखो | 

नहीं तो ये लो तुम्हे उखाड़ फेंकती हूँ
अख़बार में विज्ञापन भी बुक करा दिया है
तुम्हारी कमजदगी को जगजाहिर करने के लिए |

पैबंद व्यथित था, थक चुका था
उसने सोचा कोई बात नहीं, इससे
पहले तुम उखाड़ के फेंको, ये लो
में खुद अपने को अलग कर लेता हूँ
में पैबंद हूँ तो फिर मखमल
में मेरा क्या काम |

यही सोच पैबंद ने अपने
ताने-बाने को बटोरा और एक
दिन चुप-चाप अपने को
मखमल से अलग कर लिया |

गजब ये हुआ कि जो पैबंद था
वो मखमलमालकिन की आत्मा
को ढके हुये था |

पैबंद हटते ही मखमलमालकिन
की आत्मा कलप उठी |

उसका आवरण हट गया था
अब वो किस मुंह अख़बार में
विज्ञापन देती |

आज तो पैबंद ने हद ही कर दी
मखमलमालकिन
की बरसों पुरानी, सड़ी-गली आत्मा
को ही नंगा कर गया वो |

मखमल में पैबंद हूँ
बरसों रही यही हैसियत मेरी |

©sumeghaagarwal 






Wednesday, November 3, 2010

हाँ यही प्यार है

हाँ यही प्यार है
DATELINE INDIRAPURAM
8-9 -2006

हाँ यही प्यार है|
सच है ये प्यार
वो गालियों की बोछारें
वो इल्जामो के पुलिंदे
का कोई जवाब होता तो देती
वो सब थी तुम्हारी भरपूर कोशिशें
इस प्यार को झूठा साबित करने की|

पर जिस प्यार पर ना तुम्हारा
बस था ना मेरा है,
वो एक सच ही तो है |

चाहे कितना ही मंथन कर लूं
मेरा दिल दिमाग के हत्ते नहीं
चढ़ता इस मामले में |

सारे संशय, सारे प्रयास
इस प्यार को भुला देने में
बेकाम हैं|

वो जो सच था, अब भी वहीँ
उसी द्रढ़ता के साथ
खड़ा है हमारे तुम्हारे बीच|

मैंने तो इसे कब का गले
लगा लिया पर तुम्हारी
सरकारी मुहर की इसे
अभी दरकार है |

इतिहास जब लिखोगे तुम अपना
तो किस पन्ने को खाली छोड़ोगे |
कैसे जीवन के इस सच को छिपाओगे,
कब तक भागोगे इस से |

भाग तो रहे हो जाने कब से
पर फिर बार-बार अपने
को इस सुच के रूबरू
क्यों पाते हो ?

एक सवाल है तुमसे
एक सवाल है अपने आप से
कि अगर ये सच नहीं है
तो क्यूं तुम हर षण
साथ-साथ रहते हो ?

क्यों जीवित हो अब तक
क्यों जीवित हूँ में अब तक?
क्यों तुमने पूर्व जन्मो का हवाला दिया था ?

क्यों तुम सच उगल जाते हो
दूरभाष के लम्बे तार्रों पर ?

क्यों तुम जब मिलते हो
तो इस सच को निगल जाते हो ?

कुछ समझ है तुम्हारी कायरता की,
तुम्हारी मजबूरियों की |

पर कितनी बार कहा कि
मेरी ताकत के सहारे एक बार
यह तो स्वीकार कर लो
कि ये सच है |

अंगीकार कर लो इस सच को
चैन से तुम भी सो पाओगे
और हम भी |

इस प्रोजेक्ट प्यार की इतिश्री
कर दो वर्ना
अगले जीवन में फिर
तडपोगे, तडपाओगे |

कर्मयोग समझो इसको,
मुझे भी इस बंधन से
मुक्ति की दरकार है |

आओ दो-दो हाथ कर लें
इस सच से,
ताकि फिर चल पायें
हम अपने अपने रस्ते |


हाँ यही प्यार है
सच है ये प्यार |

©sumeghaagarwal 











Squirrel And Me

Squirrel And Me
DATELINE NEW DELHI
THE TRIBUNE OFFICE CP
12-9-1991


A little squirrel there on the terrace
Pokes and pokes into a big cloth she found there.

Is it a pantie or a shirt or a something?
What is she looking for in it?

Is it a grain attached to the cloth
or has she lost her ear-rings or the necklace?

no no no

I know what she looking for.
And she only told me that
lately she started feeling shy of being naked
when all around her clothe and clothe
not only their bodies but their souls too.

She told me
I am solid they are hollow, that is why
they need a wrap over their souls too.

The body is ok but the nakedness of the soul
they certainly could not reveal to all.
With body naked they could face some
but with the soul made naked
They Had It.

I wonder:
So what
What is new in that?

No comments please,
pleaded the squirrel.

You know what
Sometimes I feel if I too
Could adorn my beautiful soulful body
With some frilly, laced tiny clothies
And could dance and shout at the top of my voice
Look here I am with the wrap or without it

I Am.
I Am the Body.
I Am the Soul.
I Am the Creation.

:So what
Why do you make such fuss about it?
Your newly found curisoity to have your body wrapped in some frilly clothies.

You shut up.
I will do what I want to do
and would make a fuss too.
Watch it, if your clothes are
firmly attached to your body and oonh soul?

:Oofffffffffffffffff
It's Ok It's Ok It's OK

Then bye bye
and there goes the squirrel

A little squirrel there on the terrace
Pokes and pokes into a big cloth she found there.


©sumeghaagarwal 

About Me

My photo
I am a dreamer, an optimist, a person with a voice. A normal being who trained as a media professional in India and Australia. I am also a trained community worker. I love trying out new things, taking up new ventures etc. etc. I am bilingual and multicultural. I am a planetarian and try my best to live beyond barriers created by often very unkind human kind for humans and other more important living beings. I live my life reading, thinking, writing and talking.