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Tuesday, September 5, 2017


वो पूछती है

सिडनी 2015


वो पूछती है मुझसे
तुम्हारा इरादा क्या है

कहती है की तुम्हारा
तो सिगरा सिस्टम ही
गड़बड़ है |

ये भी कहती है कि
थाली के बैंगन की तरह
लुढ़कते रहते हो |

और ये भी कि
तुमने कभी कोई कोशिश
नहीं की अपना जन्म
सार्थक करने की |

नाहक ही जन्मे हो
आज यहाँ तो कल वहां
एक काम पकड़
जीवन का कल्याण
क्यों नहीं करते |

उसकी कड़क
घृणा से भरी
इल्ज़ामी उंगली
जाने कब से मुझे
मिटटी में मिलाकर
पैरों तले रौंदना चाहती है|

दिन-रात नये जीवन
को अपने हाथों के
सहारे दुनिया में प्रवेश देती है |

पर उसका बस चलता
तो मेरा बीज पनपने से
पहले ही किसी
कूड़ेदान में वो फ़ेंक आती |

वो पूछती है मुझसे
तुम्हारा इरादा क्या है| 

Sunday, February 19, 2017

एक सरकारी कोठरी

अहोभाग्य उसका कि विधवा थी । मतलब पूरी तरह क़ाबिल  थी एक मुफ्त सरकारी flat  पाने के लिए ।

अहोभाग्य उसका कि  उसे पढ़े-लिखे लोगों  का साथ मिला ।

हुआँ  यों कि  सरकार ने जारी की थी एक scheme  मज़लूम  शहरी गरीबों  के लिये  ।

अनुभा ने उस युवा विधवा को कहा कि  क्यों न वो भी बहती गंगा में हाथ धो ले । कागज़-पत्तर की चिंता न करे क्योंकि अनुभा को सब आता  था, कहाँ  कैसे क्या कागज़  पूरे करने होगे ।

सोना ने इतना कुछ झेला  था मात्र बीस-पच्चीस  की उम्र में कि  उसे किसी पर विश्वास नहीं थ। किसी से उम्मीद नहीं थी  अनुभा के समझाने -बुझाने पर वो तैयार हो गई इस जटिल  कागज़-पत्तर की  यात्रा में साथ देने के लिए ।

और इस तरह मुहिम शुरू हुई एक सरकारी सौगात पाने की ।

विडंबना ही थी कि जो सरकार, लोगो को अपने ही गाँव को छोड़ शहरों  की तरफ़  भागने को मज़बूर कर देती है। आज उन्हीं  लोगो को अब शहरी गरीब की श्रेणी में आते थे, उनके लिये बाकी  शहरियों की तरह फ्लैट में रहने का सपना बेच रही थी , अपना वोटबैंक बढ़ाने  लिये  ।

शहर जो आपका सब कुछ निचोड़ लेता है, इससे पहले की आपको कुछ दे } सोना पढ़ी-लिखी नहीं थी । उसके पास शरीर था और उसका मकसद था की अपने दो मासूम बच्चो को पाल-पोस कर बड़ा कर सके । शहर ने उसके शरीर से खूब काम करवाया । झाड़ू-पोंछा , बर्तन और खाना बनाना । वो बड़े-बड़े फ्लैटों में जाती थी और शहरी लोगो को बड़े आराम से गुजर-बसर करते देखती। वो खुद आस-पास सस्ते मोहल्ले में कमरा लेके रहती थी।

अनुभा सोचती थी कैसी है यह सरकार, जिसकी  नेता प्रदेश में अपनी मूर्तियां बनवाने-लगवाने में करोड़ो  रुपया खर्च रही थी खुद बड़े ठाठ -बाट से थी खुद सदियों से दबे-कुचले दलित पृष्ठभूमि से निकली ये महिला नेता वोट पाने के लिए, मुफ्त सरकारी फ्लैटों की रेवड़ियां  बाँट रही थी ।

anyway , सोना  और अनुभा ने मिलकर बहुत पापड़ बेले। मई-जून की भयंकर गर्मी में सड़के नापी । कागज़ पूरे  किये - जाति  प्रमाणपत्र , फ़ोटो  और जाने क्या-क्या । हर बार सरकारी दफ़्तर  कोई नो कोई नयी बात बता देता । पर अनुभा  ने हर नहीं मणि । अपनी बुद्धि , शिक्षा का प्रयोग कर वो हर सरकारी जरूत को पूरा करती रही ।

और फिर एक दिन , सरकारी दफ्तर के बाहर  लगे काले बोर्ड पर चिपके नोटिस पर अपना नाम पहचान कर सोना गदगद हो गयी । फ्लैट की चाबी सरकारी बाबू से collect कर वो अनुभा को साथ लेकर उस शहर सो थोड़ा बाहर बनाये गए बहुमंजिला सरकारी आवास के कंपाउंड पर पहुंची ।

सोना का चेहरा भाव-शून्य  था उसे लगा इससे बेहतर तो उसके 'गरीब' गाँव का  छोटा पर दिल से बनाया आधा पक्का, आधा कच्चा घर था । उसने छूटते  ही बोला की ये सरकारी मुफ्त आवास को flat नहीं एक सरकारी कोठरी कहना बेहतर होगा ।

इस सरकारी आवास योजना को पूरा हुये  अभी कुछ ही समय हुआ था पर उसकी बाहरी  और भीतरी दीवारों में जगह-जगह बड़े बड़े चप्पों  से बालू झड़ रहा था. चिर-परिचित इस्थिति थी  ही की बालू  में सीमेंट मिलाया गया था या बालू  में चुटकी भर सीमेंट मिलाकर building  बनायी  गयी थी। खुली नालियां गंधा रही थीं । एक मुफ्त में ही शहरी मलिन बस्ती बसा दी थी प्रदेश की महान महिला नेता ने ।

flat  के अंदर bathroom  में दरवाज़ा ही नहीं था । पता लगा कि  हज़ार से ऊपर फ्लैटों में, ठेकेदार एक दरवाज़ा गटक गया और उसने अपने मुनाफे में और बढ़ावा कर लिया इस जुगाड़ से ।

सोना को जो मिला उसने स्वीकार कर लिया और जुट गयी अपने एक कमरे के flat को शहरी संभ्रांत लोगो जैसे फ्लैट में बदलने के लिये  । उसने बढ़िया शावर हेड लगवाया, किचन में मार्बल का बेंचटोप  लगवाया । फर्श खुदवा कर सफेद टाइल लगवायी । और भी बहुत कुछ करती रही वो छोटे से फ्लैट को सजाने में । मिली तो थी उसे एक मुफ्त सरकारी कोठरी, पर उसे उसने एक आकर्षक फ्लैट में बदल दिया ।

उस सरकारी मलिन बस्ती में सब मिल-जुल कर रहते थे। रोजमर्रा की तकलीफों  को , गंदगी  को, बदइंतज़ामी  को ये शहरी गरीब मूलतया चुप रह कर निभाते थे ।

और जब ये सरकारी मिलन बस्ती में धीरे-धीरे रौनक बस गयी तब उस प्रदेश की मुख्यमंत्री जिनकी वह सौगात थी , एक दिन आयीं  उस जगह का औपचारिक उद्घाटन करने के लिये ।

सोना ने भी उन्हें देखा, अपने आवास की छत  पर बाकि बस्तीवासियों  के साथ मिल कर ।
सोना बड़ी प्रभावित हुई , मुख्यमंत्रीजी के बढ़िया कढ़े  और पक्के काले रंगे  हुये  बालों  को देख कर ।

इस बीच, अनुभा को सरकार की , ठेकेदारों  की बन्दर-बाँट साफ दिखती थी । पर कुछ कर नहीं सकती थी ये तो हमेशा से ही होता आ  रहा था इस देश में । छोटे-बड़े नेता छोटे-छोटे प्रलोभन देकर गरीब का वोट हासिल करने में जुटे रहते थे । मूल-भूत आवशयकताओं  को पूरा करने, दर-दर भटकते इस देश के लोग, जो भी थोड़ा-बहुत मिलता सर-झुका स्वीकार कर लेते थे , खुश रहते थे की चलो कुछ तो मिला ।

आने वाले चुनाव में सोना ने ख़ुशी-ख़ुशी वोट उसी पक्के काले रंग बालों वाली महिला को दियाI  अपने गांव से जल्दी वापस लौटी सिर्फ़ वोट देने कि ख़ातिर । सोना के हिस्से में एक free कोठरी आई और नेता के हिस्से में परम सत्ता ।


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I am a dreamer, an optimist, a person with a voice. A normal being who trained as a media professional in India and Australia. I am also a trained community worker. I love trying out new things, taking up new ventures etc. etc. I am bilingual and multicultural. I am a planetarian and try my best to live beyond barriers created by often very unkind human kind for humans and other more important living beings. I live my life reading, thinking, writing and talking.