वो पूछती है
सिडनी 2015
वो पूछती है मुझसे
तुम्हारा इरादा क्या है
कहती है की तुम्हारा
तो सिगरा सिस्टम ही
गड़बड़ है |
ये भी कहती है कि
थाली के बैंगन की तरह
लुढ़कते रहते हो |
और ये भी कि
तुमने कभी कोई कोशिश
नहीं की अपना जन्म
सार्थक करने की |
नाहक ही जन्मे हो
आज यहाँ तो कल वहां
एक काम पकड़
जीवन का कल्याण
क्यों नहीं करते |
उसकी कड़क
घृणा से भरी
इल्ज़ामी उंगली
जाने कब से मुझे
मिटटी में मिलाकर
पैरों तले रौंदना चाहती है|
दिन-रात नये जीवन
को अपने हाथों के
सहारे दुनिया में प्रवेश देती है |
पर उसका बस चलता
तो मेरा बीज पनपने से
पहले ही किसी
कूड़ेदान में वो फ़ेंक आती |
वो पूछती है मुझसे
तुम्हारा इरादा क्या है|