DATELINE INDIRAPURAM
6-11-2010
मखमल में पैबंद हूँ
बरसों रही यही हैसियत मेरी |
मखमल को वो सहेजती रही |
पैबंद मखमल के साथ
अपनी कमजदगी का एहसास लिए
बरसों धुना, पिटा, निचुड़ा
पर मखमल का हिस्सा रहने
की मुहिम जारी रखी
पैबंद ही सही, पर था
वो मखमल का हिस्सा |
फिर एक दिन पैबंद को
एहसास हो उठा कि
वो सिर्फ पैबंद नहीं है
वो तो मखमल का ही एक
मखमली हिस्सा था |
और फिर उसने मुहिम छेड़ दी
मखमल से अपना मखमली
वजूद स्वीकार करवाने की |
पैबंद जागरूक हो उठा था
उसे अब और दबे-कुचले रहना
मंजूर नहीं था |
पर जो आँखे, जो हाथ, जो आत्मा
उसे बरसों पैबंद की पदवी पर बिठाये रखी
वो तैयार नहीं थी पैबंद को
अपने विशाल मखमल का
मखमली हिस्सा मानने के लिए |
उसने कह दिया पैबंद से कि
क्यों इतना दुसाहस करते हो
पैबंद हो पैबंद रहो, मेरे मखमल
क़ी तरह मखमली वजूद पाने क़ी
ख्वाइश ना रखो |
नहीं तो ये लो तुम्हे उखाड़ फेंकती हूँ
अख़बार में विज्ञापन भी बुक करा दिया है
तुम्हारी कमजदगी को जगजाहिर करने के लिए |
पैबंद व्यथित था, थक चुका था
उसने सोचा कोई बात नहीं, इससे
पहले तुम उखाड़ के फेंको, ये लो
में खुद अपने को अलग कर लेता हूँ
में पैबंद हूँ तो फिर मखमल
में मेरा क्या काम |
यही सोच पैबंद ने अपने
ताने-बाने को बटोरा और एक
दिन चुप-चाप अपने को
मखमल से अलग कर लिया |
गजब ये हुआ कि जो पैबंद था
वो मखमलमालकिन की आत्मा
को ढके हुये था |
पैबंद हटते ही मखमलमालकिन
की आत्मा कलप उठी |
उसका आवरण हट गया था
अब वो किस मुंह अख़बार में
विज्ञापन देती |
आज तो पैबंद ने हद ही कर दी
मखमलमालकिन
की बरसों पुरानी, सड़ी-गली आत्मा
को ही नंगा कर गया वो |
मखमल में पैबंद हूँ
बरसों रही यही हैसियत मेरी |
©sumeghaagarwal
5 comments:
.
Hi Sumedha
It's a beautiful creation with great depth in it.
.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
Sorry I took me so many years to say thanks. Hardly ever got time to work on my all these years. Best
Thank you Sanjay. Apologies for not responding all these years as i just didn’t get chance to work on my blog. Plan to publish more from now on. Brst
अहसास की गहराई, सुमेघा जी की कलम से...:वीनू
Post a Comment