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Wednesday, February 24, 2016

New Delhi Cantonment
Circa 1987

ओ पीले पत्ते

ओ पीले पत्ते,
देख लिया तुमने आज़
जो पेड़ से जुड़ा रहना था तुम्हारा
एक भ्रम ही था ।

पेड़ ने, एक हवा का झोंका आया
और अलग कर दिया तुमको
कितनी आसानी से ।

तुम उस पर उगे, पनपे
उसकी सांसो से जुड़ी थी
तुम्हारी सांसे ।

कितने दिवसों तक
तुम उसके साथी रहे
पर तुमने पाया कि
धीरे-धीरे तुम कमज़ोर हो रहे थे ।

और पेड़ वहीं था खड़ा सुगठित
अपने यौवन में मदमस्त ।

कल तक तुम जीव थे,
आज अजीव हो ।
और अपने जैसे सैकड़ों के साथ
मिल कर बन गये हो ढ़ेर
एक कूड़े का ।

क्या पेड़ का ये करना सही था?
शायद हां,
क्योंकि तुम एक भ्रम
में जी  रहे थे जुड़ाब  के ।

और फ़िर  ये भ्रम फ़िर जितनी जल्दी टूटे अच्छा है
ताकि तुम जान सको यथार्थ क्या है। 

दोस्त पेड़ तो धन्यवाद का पात्र है तुम्हे यथार्थ में लाने के लिये,
और फिर तुमने पेड़ के दर्द को नहीं समझा। 

क्या वो अनभिज्ञ है  इस बात से,
कि तुम अलग हो रहे हो ।
नहीं, सोचो तो चाहे अनचाहे
उसे अपने एक अंग से विदा लेनी ही होगी ।

ओ पीले पत्ते,
देख लिया तुमने आज़
जो पेड़ से जुड़ा रहना था तुम्हारा
एक भ्रम ही था । 

1 comment:

Veenu Kumar said...


"ओ पीले पत्ते,
देख लिया तुमने आज़
जो पेड़ से जुड़ा रहना था तुम्हारा
एक भ्रम ही था..."
(Bahut khoob)

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I am a dreamer, an optimist, a person with a voice. A normal being who trained as a media professional in India and Australia. I am also a trained community worker. I love trying out new things, taking up new ventures etc. etc. I am bilingual and multicultural. I am a planetarian and try my best to live beyond barriers created by often very unkind human kind for humans and other more important living beings. I live my life reading, thinking, writing and talking.