जुलाई २०१० इंदिरापुरम
"मेरे गोपाल" ने दूध पीया
काकी गोपाल को बेटा-बहु के हवाले कर आई थी।
बहुत काम था गोपाल का। दिन में तीन बार खाना देना होता है, सुबह नहलाना पड़ता है, सब कुछ नियम से करना पड़ता है।
काकी का दिल जब तब टुगबुग करता रहता है। पता नहीं, बहु-बेटा "मेरे गोपाल" की सेवा ठीक से कर पा रहें हैं की नहीं ?
एक दिन बहु का फ़ोन आया। गोपाल ने दूध पी लिया। बेटे ने रोज की तरह गोपाल को दूध दिया और गोपाल ने दूध पी लिया। आस पास खबर फ़ैल गयी, गोपाल दूध पी रहा था। फिर क्या था, अड़ोसी-पडोसी, आस-पास के लोग गोपाल के लिए दूध लेकर आ गए। काकी का मिटटी का छोटा सा घर लोगो से भर गया। सारे फर्श में कीचड़-कीचड़ हो गया। गोपाल ने खूब छक कर दूध पिया।
फिर बेटे को कहना ही पड़ा की इतना दूध मत पिलाओ, मेरे गोपाल का पेट फट जायेगा।
जब से गोपाल ने दूध पिया है, बेटा भी गोपाल को एक फेरा खाना दे देता है। बाकी काम काकी के जाने के बाद, बहु ही कर रही थी अब तक।
काकी का दिल बहुत खुश है, अपने गोपाल के दूध खाने पर। काकी सोच रही हैं की अबकी बार जब थोडा पैसा होगा हाथ में, तो गोपाल को कपडा देना होगा। सब कुछ बनाना होगा - मुकुट, अंगरखा, धोती और जाने क्या क्या।
©sumeghaagarwal
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