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5 /10 /07
आधी अधूरी पर पूरी ये जिंदगी
अधूरी होली, अधूरी दिवाली
थोड़ी सी ईद, आधी सी क्रिसमस
बरसो से मेरी खिल्ली ये सब उड़ाती.
आती हैं, जाती हैं
ritual निभाने
रावन की जगह तीर मुझमे आजमाने.
पूरी सूली पर आधा-अधूरा
मुझे टांग जाती.
नियम से हर साल
अपने-अपने नियत समय पर
आकर मुझे मुंह चिढाती
कि हम तो हैं पूरी
तुम ही अधूरे.
अधूरेपन की धुरी पर
चकरघन्नी बन कर
आधी-अधूरी सांसों के दम पर
करने में जुटे हो तुम जीवन को पूरा.
चलो बहुत try मार लिया
समझो कि तुम कि
हो चाहे आधे-अधूरे
पर जी है जिंदगी तुमने पूरी
हमें है आना, हमें है जाना
बहुतो के दिल को बहलाना
आशायों को जगाना.
हामिद की तरह जाओ मेले से
चिमटा तो ले आओ
दादी कभी मिल ही जाएगी.
रंगों की पुडिया खोले ही
रखना कभी किसी को
लगा तो सकोगे.
एक दीप हर दिवाली जलाते ही रहना
पठाखे कोई उससे जला ही लेगा.
निजामुद्दीन के ठिये से
सिवैय्यों के झुरमुट लाते ही
रहना, कभी तो उन्हें
सही-सही बना ही लोगे.
ईसा के मंदिर में जाते ही रहना
कभी तो तुम्हारे मौन को वो सुनेगा.
हम भी अधूरे, तुम भी अधूरे
पर मिल कर हो जातें हैं पूरे.
अधूरी होली, अधूरी दिवाली
थोड़ी सी ईद, आधी सी क्रिसमस
बरसों से मेरी खिल्ली ये सब उड़ाती.
©sumeghaagarwal
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