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Saturday, September 11, 2010

आधी अधूरी पर पूरी ये जिंदगी

DATELINE INDIRAPURAM
5 /10 /07

आधी अधूरी पर पूरी ये जिंदगी


अधूरी होली, अधूरी दिवाली
थोड़ी सी ईद, आधी सी क्रिसमस
बरसो से मेरी खिल्ली ये सब उड़ाती.

आती हैं, जाती हैं
ritual निभाने
रावन की जगह तीर मुझमे आजमाने.

पूरी सूली पर आधा-अधूरा
मुझे टांग जाती.

नियम  से हर साल
अपने-अपने नियत समय पर
आकर मुझे मुंह चिढाती
कि हम तो हैं पूरी
तुम  ही अधूरे.

अधूरेपन की धुरी पर
चकरघन्नी बन कर
आधी-अधूरी सांसों के दम पर
करने में जुटे हो तुम जीवन को पूरा.

चलो बहुत try  मार लिया 
समझो कि तुम कि
हो चाहे आधे-अधूरे 
पर जी है जिंदगी तुमने पूरी

हमें है आना, हमें है जाना 
बहुतो के दिल को बहलाना
आशायों को जगाना. 

हामिद की तरह जाओ मेले से
चिमटा तो ले आओ
दादी कभी मिल ही जाएगी. 

रंगों की पुडिया खोले  ही 
रखना कभी किसी को 
लगा तो सकोगे.

एक दीप हर दिवाली जलाते ही रहना 
पठाखे कोई उससे जला ही लेगा.

निजामुद्दीन के ठिये से
सिवैय्यों के झुरमुट लाते ही
रहना, कभी तो उन्हें
सही-सही बना ही लोगे.

ईसा के मंदिर में जाते ही रहना
कभी तो तुम्हारे मौन को वो सुनेगा.

हम भी अधूरे, तुम भी अधूरे
पर मिल कर हो जातें हैं पूरे.

 अधूरी होली, अधूरी दिवाली
थोड़ी सी ईद, आधी सी क्रिसमस
बरसों से मेरी खिल्ली ये सब उड़ाती.

©sumeghaagarwal

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I am a dreamer, an optimist, a person with a voice. A normal being who trained as a media professional in India and Australia. I am also a trained community worker. I love trying out new things, taking up new ventures etc. etc. I am bilingual and multicultural. I am a planetarian and try my best to live beyond barriers created by often very unkind human kind for humans and other more important living beings. I live my life reading, thinking, writing and talking.